महाकवि सुब्रह्मण्य भारती की जन्मजयंती (Birth Anniversary of Subramania Bharati) भारतीय भाषा उत्सव के रूप में मनाई जाएगी। उ0प्र0 शासन के आदेश संख्या-529/पी0एस0/भा0पु0सं0, रा0ए0/2022 भाषा अनुभाग-3 लखनऊ दिनांक 10 दिसम्बर, 2022 एवं मुख्य सचिव(कार्य वाहक) उ0प्र0शासन के पत्र संख्या-1593/अरसठ-2-2022 बेसिक शिक्षा अनुभाग-2 लखनऊ दिनांक 10 दिसम्बर, 2022 के क्रम में प्रत्येक परिषदीय प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में महाकवि सुब्रह्मण्य भारती की जयंती दिनांक 11 दिसम्बर को भारतीय भाषा उत्सव के रूप में मनाए जाने के लिए विस्तृत निर्देश जारी किए गए हैं। यह निर्देश निम्नवत् हैं –
- भारत में बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं के बारे में छात्र-छात्राओं को विस्तार पूर्वक जानकारी दी जाए।
- भारतीय साहित्य के महान कवि सुब्रह्मण्य भारती के साहित्य एवं व्यक्तित्व तथा उनके महान योगदान पर चर्चा की जाये।
- भारत की विभिन्न भाषाओं की महत्वपूर्ण पुस्तकों के बारे में छात्र-छात्राओं को जानकारी दी जाए।
- भारतीय भाषाओं के महान कवियों एवं लेखकों के बारे में जानकारी दी जाये एवं राष्ट्र की एकता अखण्डता व नागरिकों के मध्य प्रेम एवं सौहार्द बढ़ाने के उनके योगदान पर चर्चा की जाय। बच्चों के मध्य कविता, निबंध, वाद-विवाद एवं चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन किया जाये।
- भाषा एवं साहित्य के विभिन्न रूपों यथा कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, महाकाव्य इत्यादि के बारे में बताया जाए और सम्भव हो सके तो किसी विषय पर नाटक का आयोजन भी कराया जाए।
उक्त निर्देशों के क्रम में महापुरुषों की जयंती मनाए जाने के क्रम में विद्यालयों में विभिन्न कार्यक्रम एवं प्रतियोगिताएँ आयोजित की जा रही हैं।
महाकवि सुब्रह्मण्य भारती : जीवन परिचय
महान देशभक्त कवि सुब्रह्मण्य भारती (Subramania Bharati) का जन्म 11 दिसम्बर, 1882 को तमिलनाडु राज्य के एक गाँव एट्टियपुरम् में हुआ था। सुब्रह्मण्य भारती केवल तमिल ही नहीं अपितु भारत के महान कवियों में से एक हैं। इन्होंने अधिकांश रचनाएँ तमिल भाषा में की हैं परन्तु इन्हें तमिल भाषा के अतिरिक्त हिन्दी, संस्कृत, बंगाली एवं अंग्रेजी भाषाओं का आधिकारिक ज्ञान था। भारती एक जुझारू शिक्षक, देशप्रेमी और महान् कवि थे। मात्र 11 वर्ष की आयु से ही कवित्व की प्रतिभा के प्रदर्शन से विस्मित होकर इन्हें देवी सरस्वती के नाम भारती की उपाधि दी गयी।
देशभक्त कवि एवं सक्रिय समाजसुधारक
तमिल भाषा के महाकवि सुब्रह्मण्य भारती ऐसे साहित्यकार थे, जो सक्रिय रूप से ‘स्वतंत्रता आंदोलन‘ में शामिल रहे, एवं उनकी रचनाओं से प्रेरित होकर दक्षिण भारत में आम लोग आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े। छोटी उम्र में ही माता और पिता के निधन तथा मात्र 11 वर्ष की आयु में ही विवाह के पश्चात् सुब्रह्मण्य भारती अपनी बुआ के पास वाराणसी (बनारस) आ गए। वाराणसी में ही भारती ने राष्ट्रवाद एवं अध्यात्म से पहला परिचय प्राप्त किया और राष्ट्रवाद की भावना ने कालांतर में उनके जीवन और रचनाकर्म दोनों को आकार दिया। अध्यात्म की ओर उन्मुख होकर जीवन अनोखे रंग में ढला और रचनाओं में यह अध्यात्म मुखर होकर उपस्थित रहा। काशी (वाराणसी) में उनका सम्पर्क भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा निर्मित ‘हरिश्चन्द्र मण्डल’ से रहा। काशी में उन्होंने कुछ समय एक विद्यालय में अध्यापन किया।
महाकवि भरतियार के नाम से ख्यात सुब्रह्मण्य की रचनाओं में तमिल राष्ट्रवाद के साथ ही हिन्दू राष्ट्रवाद कूट-कूट कर भरा है। उनकी रचनाओं में यह भाव स्वामी विवेकानन्द के विचारों एवं उनके जीवन के प्रभाव में आने से और मुखर होकर अभिव्यक्त हुआ है। भारती का प्रिय गान राष्ट्रगीत वंदे मातरम् था और वह इस गीत से अभिभूत थे। उन्होंने इस गीत की लय पर ही आधारित तमिल अनुवाद किया और वंदे मातरम् को तमिल जनता का कंठहार बना दिया।
सुब्रह्मण्य भारती की रचनाएँ
सुब्रह्मण्य भारती ने जहाँ गद्य और पद्य की लगभग 400 रचनाओं का सृजन किया, वहाँ उन्होंने ‘स्वदेश मित्रम’, ‘चक्रवर्तिनी’, ‘इण्डिया’, ‘सूर्योदयम’, ‘कर्मयोगी’ आदि तमिल पत्रों तथा ‘बाल भारत’ नामक अंग्रेज़ी साप्ताहिक के सम्पादन में भी सहयोग किया। उनकी कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
- कुयिल् पाट्टु
- कण्णऩ् पाट्टु (=श्रीकृष्ण गान)
- चुयचरितै (=सुचरितम् ; आत्मकथा ; १९१०)
- तेचिय कीतंकळ् (देशभक्ति गीत)
- पारति अऱुपत्ताऱु
- ञाऩप् पाटल्कळ् (तात्विक गीत)
- तोत्तिरप् पाटल्कळ्
- विटुतलैप् पाटल्कळ्
- विनायकर् नाऩ्मणिमालै
- पारतियार् पकवत् कीतै (=भारतियार की भगवत गीता)
- पतंचलियोक चूत्तिरम् (=पतंजलि योगसूत्रम्)
- नवतन्तिरक्कतैकळ्
- उत्तम वाऴ्क्कै चुतन्तिरच्चंकु
- हिन्तु तर्मम् (कान्ति उपतेचंकळ्)
- चिऩ्ऩंचिऱु किळिये
- ञाऩ रतम (=ज्ञान रथम्)
- पकवत् कीतै (=भगवत गीता)
- चन्तिरिकैयिऩ् कतै
- पांचालि चपतम् (=पांचालि शपथम्)
- पुतिय आत्तिचूटि
- पॊऩ् वाल् नरि
- आऱिल् ऒरु पंकु
भारती 40 साल से भी कम समय तक जीवित रहे और इस अल्पावधि में भी उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में काफ़ी काम किया। साहित्य सृजन, विशेषतः काव्य-सृजन, अभिभाषण, पत्रकारिता, स्वदेश सेवा, समाजोत्थान के कार्य, नारी शिक्षा और नारी स्वाभिमान के लिए कार्य इत्यादि क्षेत्रों में आपका योगदान अतुल्य है। 11 सितंबर, 1921 को मद्रास में उनका निधन हो गया।